अनुभूति में
डॉ मनोज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
भीड़ का हिस्सा रहा तब
लम्हे-लम्हे पर
सब
सियासी चाल हैं
साज़िश
फँसकर रह जाएगी
सूरज भी
मेरी गोद में
छंदमुक्त में-
अतीत
क्रिकेट का हवाओं के साथ खिलवाड़
स्वस्थ धुओं का सुख
अंजुमन में-
दिल्लगी
पत्थरों सा दिल
बिखरे हैं जो कचरे
मेरे गीतों
में
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साज़िश फँसकर रह
जाएगी
चालों पर चालें अब मत चल मतलब की पछुवाई में
साज़िश फँसकर रह जाएगी लफ़्ज़ों की गहराई में
जिस्म रौंदकर घाव बनाए छिड़के मिर्च-नमक तुमने
सूई-धागा बन जाएँगे, ज़ख़्मों की तुरपाई में
कश्मीरी मुद्दे का बकरा ज़िबह नहीं कर पाएगा
गरदन ढाल बना देंगे हम छूरे की चलवाई में
नफ़रत के तूफान चलाकर सुखा दिया जीवन का रस
अमृत-धारा बरसाएँगे जीवन की भरपाई में
दो-मुँहे हो ब्याल डस रहे ज़र्फ़ और जज़्बात को
अपनी उम्र लुटा देंगे हम कुरबत की चढ़वाई में
बदमिज़ाज़ है तेरा रहबर आस्तीन में पलते हो
ख़ैर मनाओ दाँतों की तुम ज़हरों की दफ़्नाई में
११ नवंबर २०१३ |