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अनुभूति में डॉ मनोज श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
भीड़ का हिस्सा रहा तब
लम्हे-लम्हे पर

सब सियासी चाल हैं
साज़िश फँसकर रह जाएगी
सूरज भी मेरी गोद में

छंदमुक्त में-
अतीत
क्रिकेट का हवाओं के साथ खिलवाड़
स्वस्थ धुओं का सुख

अंजुमन में-
दिल्लगी
पत्थरों सा दिल
बिखरे हैं जो कचरे

मेरे गीतों में

  लम्हे-लम्हे पर

लम्हे-लम्हे पर सवार हूँ कि नहीं
आसेबी दौर में शुमार हूँ कि नहीं

अब वक़्त के मिज़ाज़ का है इल्म कहाँ
सानिहा औ' दग़ा की बयार हूँ कि नहीं

उलट के बह रही गंगाओं के तआकुब में
सर्द गर्दिशे-दहर की रफ़्तार हूँ कि नहीं

जो लोग सिदक और अदल से गुरेज़ाँ हैं
उनके मौजे-हवस की डकार हूँ कि नहीं

जिनके ये मुल्क़, शहर, गाँव सब निवाले हैं
उनके चंद शोरिशों की एक हुँकार हूँ कि नहीं

११ नवंबर २०१३

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