अनुभूति में
डॉ मनोज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
भीड़ का हिस्सा रहा तब
लम्हे-लम्हे पर
सब
सियासी चाल हैं
साज़िश
फँसकर रह जाएगी
सूरज भी
मेरी गोद में
छंदमुक्त में-
अतीत
क्रिकेट का हवाओं के साथ खिलवाड़
स्वस्थ धुओं का सुख
अंजुमन में-
दिल्लगी
पत्थरों सा दिल
बिखरे हैं जो कचरे
मेरे गीतों
में
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भीड़ का हिस्सा रहा
तब
भीड़ का हिस्सा रहा तब, भीड़ से अब कट गया हूँ
थी बरसने की ललक, पर बादलों-सा छँट गया हूँ
मसअलों से मुब्तिला हूँ कर्ब के कुहसार में
था कभी रफ़्तार में अब काफ़िले से हट गया हूँ
ज़ीस्त के इस आइने में मौत का परताँ लिए
ख़्वाब की गलियों में मैं हत ख़्वाहिशों से पट गया हूँ
कहकेशाँ में गिर पड़ा था रोशनी की चाह में
बिजलियों का था ज़खीरा बिजलियों से सट गया हूँ
था सियासत में कभी नामी-गिरामी आईकन
धूप में जलता हुआ हिमखंड-सा मैं घट गया हूँ
नागहाँ-सा था फ़िदा ज़न्नत की हूरों पर अरे
नींद से बाहर निकलते ही मैं ख़ुद से जट गया हूँ
११ नवंबर २०१३ |