अनुभूति में
डॉ मनोज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
भीड़ का हिस्सा रहा तब
लम्हे-लम्हे पर
सब
सियासी चाल हैं
साज़िश
फँसकर रह जाएगी
सूरज भी
मेरी गोद में
छंदमुक्त में-
अतीत
क्रिकेट का हवाओं के साथ खिलवाड़
स्वस्थ धुओं का सुख
अंजुमन में-
दिल्लगी
पत्थरों सा दिल
बिखरे हैं जो कचरे
मेरे गीतों
में
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पत्थरों सा
दिल
पत्थरों-सा दिल तेरा
मोम-सा मत गल
मौत की मुखबिरी कर
ज़िन्दगी को छल
आदमी जो कहर है
बारूद का है फल
सत्संग-मज़लिस हो जहां
हैवानियत है बल
शहर में पैदा हुआ
हादसों में पल
११ अप्रैल २०११
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