अनुभूति में
डॉ मनोज श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
भीड़ का हिस्सा रहा तब
लम्हे-लम्हे पर
सब
सियासी चाल हैं
साज़िश
फँसकर रह जाएगी
सूरज भी
मेरी गोद में
छंदमुक्त में-
अतीत
क्रिकेट का हवाओं के साथ खिलवाड़
स्वस्थ धुओं का सुख
अंजुमन में-
दिल्लगी
पत्थरों सा दिल
बिखरे हैं जो कचरे
मेरे गीतों
में
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बिखरे हैं जो
कचरे
बिखरे हैं जो कचरे सरे बाज़ार में
लाइन लगी है उनके लिए सौ कतार में
वे सो रहे हैं बेखटक और बेहिसाब
पर, आज भी आगे हैं वो जीस्त की रफ़्तार में
हम ढल रहे हैं आज तलक इस खुमार में
आएगा कोई फर्क नए नेतावातार में
बारूद में जो ढल गए हैं जिस्म के कतरे
क्या वे रुला सकेंगे हमें आज के अखबार में
जीनत का ताज़महल या मज़नू की कब्रगाह
क्या तुम बना सकोगे मेरी यादगार में
ना तोप, ना बंदूक, ना ही एक मिसाइल
जब शब्द चीरते हों हमें आर-पार में
ना प्यार, ना विश्वास, ना ही महकते रिश्ते
बस! रह गए हैं अस्थि-पंजर आज के परिवार में
११ अप्रैल २०११
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