हवा जब किसी की
हवा जब किसी की कहानी कहे है
नए मौसमों की जुबानी कहे है
फ़साना लहर का जुड़ा है जमीं से
समन्दर मगर आसमानी कहे है
कटी रात सारी तेरी करवटों में
कि ये सिलवटों की निशानी कहे है
नई बात हो अब नए गीत छेड़ो
गुज़रती घड़ी हर पुरानी कहे है
मुहल्ले की सारी गली मुझको घूरे
हुई जब से बेटी सयानी कहे है
यहाँ ना गुज़ारा सियासत बिना अब
मेरे मुल्क की राजधानी कहे है
"रिवाज़ों से हट कर नहीं चल सकोगे"
कि ये जड़ मेरी खानदानी कहे है
१९ जनवरी २००९ |