दूर क्षितिज पर
सूरज चमका
दूर क्षितिज पर सूरज चमका, सुबह खड़ी है आने को
धुंध हटेगी, धूप खिलेगी, वक्त नया है छाने को
प्रत्यंचा की टंकारों से सारी दुनिया गुँजेगी
देश खड़ा अर्जुन बन कर गांडीव पे बाण चढ़ाने को
साहिल पर यूं सहमे-सहमे वक्त गँवाना क्या यारों
लहरों से टकराना होगा पार समन्दर जाने को
पेड़ों की फुनगी पर आकर बैठ गई जो धूप जरा
आँगन में ठिठकी सर्दी भी आए तो गरमाने को
हुस्नो-इश्क पुरानी बातें, कैसे इनसे शेर सजे
आज गज़ल तो तेवर लाई सोती रूह जगाने को
टेढ़ी भौंहों से तो कोई बात नहीं बनने वाली
मुट्ठी कब तक भीचेंगे हम, हाथ मिले याराने को
वक्त गुज़रता सिखलाता है, भूल पुरानी बातें सब
साज नया हो, गीत नया हो, छेड़ नए अफ़साने को
अपने हाथों की रेखाएँ कर ले तू अपने वश में
तेरी रूठी किस्मत "गौतम" आए कौन मनाने को
१९ जनवरी २००९ |