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उसने चुना |
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१
बीहड़ जंगल के मध्य
उस महिला ने चुने दो-चार खेत
दो-चार पशु
एक कमरे के घर के बाहर
छोटे बरामदे में
सारे मौसमों के विरुद्ध
चुना केवल अपने आप को
भय को उसने
समाज के लिए
देवी देवताओं की तरह
दूर बस्ती में छोड़ दिया था
गरमी में उसने पसीने को चुना
बरसात में बिजली को
चमकहीन और ध्वनिहीन कर
गीलापन चुना अपने लिए
शरद की चाँदनी में
चुना बीते सपनों को
शिशिर में बीजों को चुना
हेमंत की रातों में
घर का आसपास
ताज़ा बर्फ़ पर हिंस्र चिह्नों के बीच
चुना चूल्हे के ताप को
बसंत में
ब्रह्मांड भर में
उसने अकेले फूल को चुना
और बालों में खोंस लिया।
–तेजराम शर्मा |
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इस
सप्ताह
महिला दिवस के उपलक्ष्य में-
गीत और ग़ज़लों में-
छंदमुक्त में-
दिशांतर में-
नई हवा में-
पिछले सप्ताह
छंदमुक्त में-
नरेश अग्रवाल,
डॉ. हृदय
नारायण उपाध्याय, बिंदु भट्ट,
विजय
कुमार श्रीवास्तव 'विकल',
श्यामल सुमन,
पं. जयदेव वशिष्ठ,
गुरमीत बेदी
और इला प्रसाद
मुक्तक में-
अंजुमन में-
हाइकु में-
इस माह के कवि-
वसंत विशेषांक
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