तेल मंथन - कुछ
मुक्तक
1
तेल मंथन का आभामय सुंदर स्वर्णिम इतिहास
त्याग समर्पण ज्ञान कर्म का अदभूत जिसमें वास।
निर्गम दुर्गम वन हों थल होया हो सिंधु विशाल
तेल कार्मिक अविचल निर्भय ड़टे ठोक कर ताल।
2
विदेशी विशेषज्ञों ने की थी अपनी राय यह व्यक्त
तेल की बूँद नहीं भारत में पूर्वोत्तर के अतिरिक्त।
भारतीय भूविदों ने दर्शायी तब उन्हें तेल की धार
खोज लिए निज देश में कई तेल गैस भंडार।
3
गैस कह रही तेल से तू क्यों तरल शरीर
एक माँ की संतान पर मैं तो चंचल अधीर।
कहा तेल ने ऐ बहिन तू सरल सहज और नेक
उर्जा हममें एक-सी अर्थात हम अंतर्मन से एक।
4
सागर पूछता पवन से मुझको बींध रहा है कौन?
मेरे उर्जागार मे लगा रहा है सेंध निरंतर कौन।
तेल कार्मिकों ने खोज लिया है छुपा तुम्हारा कोष
भारत विकास के कर्णधार अब करना ना आक्रोश।
5
तेल गैस की स्वर्णिम यात्रा में ऐसे भी आए मोड़
कर्म क्षेत्र से कर्मठ कई साथी गए अचानक छोड़।
परम अनुपम त्याग पर उनके गर्वित है सारा देश
कर्म ही जीवन कर्म ही मृत्यु उनका यह संदेश।
24 फरवरी 2007 |