मधु का प्याला
खिचीं हाथ में वे रेखाएँ
कर से पकड़ लिया प्याला
किस्मत में लिखवाकर लाया कहलाया पीनेवाला
दुनियावालों! नियति यही थी बतलाओ! मैं क्या करता
बदा भाग्य में अदा कर रहा पीकर के! मधु का प्याला।।1
आज एक, दो जाम दिए कल परसों प्याले पर प्याला।
किंतु, न प्यास बुझा पाएगा सागर भर, पीकर-हाला
यह, प्यास ही ऐसी है, मित्रों
प्यासा रहता पीनेवाला
ऐसे प्यासों को सादर, मैं देता हूँ! मधु का प्याला।।2
करी आरती, हुई प्रार्थना
मंदिर पर पड़ता ताला
मस्जिद ऊपर बाँग लगाकर चला गया मस्जिद वाला
किंतु, यहाँ हाला पीने पर दुनिया वालों! क्या गुज़री
पीकर के बेहोश पड़ा पर था पकड़े! मधु का प्याला।।3
मेरे हितू न पूछो मुझसे मुश्किल में मम जान फँसी
एक तरफ़ है, मेरी दुनिया एक तरफ़ मेरी-हाला
किसको मैं स्वीकार करूँ या किसको मैं इंकार करूँ
मुश्किल मेरी दुनिया छोडूँ या छोडू! मधु का प्याला।।4
मेरे हितू न मुझसे पूछो कितनी पीली है हाला
प्याले पर प्याले ढाले हैं
अंतर में उभरा छाला
अब, छोडूँ तो जान तड़फती
पीता हूँ तो, मौत खड़ी
असमंजस में मुझे डालता
बार-बार मधु का प्याला।5
शुक्रवार को मिला नवाजी
सजदा करते मसजिद में
रविवार को गिरजाघर में
याद किया जाने वाला
खोले बंद-कपाट समय से
पंडित जी मंदिर-वाला
दुनियावालों! जब जी चाहे
भर पी लो! मधु का प्याला।।6
किसी समय जिसके आँगन में
प्याला रुन-झुन बजती थी
कभी उसी आँगन के भीतर
संन्यासी जपता माला
किसी समय जिसके आँगन में
लक्ष्मी पूजन होता था।
कभी उसी आँगन के भीतर
ढला करा! मधु का प्याला।।7
किसी समय जिनको लगते थे
कारागृह देवालय से
बड़ी हथकड़ियाँ के आभूषण
तन पर धारण करते थे
फाँसी का फंदा गरदन का
थी, जिनकी तुलसी-माला
इंकलाब का मंच लवों पर
देश भक्ति! मधु का प्याला।।8
मेरा मन जब विचलित होता
कहता आ, ''साक़ीवाला''
राग, द्वेष-प्रतिशोध, वैर पर
पी-लेना मेरी हाला
मेरे भीतर द्वंद्व मचा हो
क्लेश नहीं-हिक पाता है
मुझ पर मादकता हाला की
छा जाता! मधु का प्याला।।9
मेरे प्याले से झलकेगी
जहाँ-जहाँ भादक हाला
वहाँ-वहाँ हर दिन उभरेगा
एक नया पीने वाला
मीनारें चढ़-मुल्ला-बोले
पंडित-फेरेगा-माला
जिओ और जीने दो सबको
पीने दो! मधु का प्याला।।10
शिकन न उभरी चेहरे ऊपर
मस्ती में पीने वाला
हाय-हाय कर मैंने अब तक
कितना जीवन जी डाला
उसे मिली पीने को हाला
मानों सब कुछ पा जाता
बची न कोई और कामना
पीकर के! मधु का प्याला।।11
अलग-अलग रंगों में लेकिन
माटी निर्मित-हर प्याला
थल से नभ की ऊँचाई से
भी ऊँची साक़ीवाला
दुनिया भर के सागर जितने
इतनी भर- लाया हाला
मानव जीवन के दर्शन से
भरा गया! मधु का प्याला।।12
विश्वात्मा! मेरा अग्रज
प्याले में सागर भरता
कितना बड़ा रहा हाला गृह
कितना बड़ा रहा प्याला
चुस्की एक लगाकर किसमें
सारा सागर पी डाला
पिया गया था जिससे सागर
छोड़ गया! मधु का प्याला।।13
मेरे बंधु यहाँ जीते है
पी-पी कर अपनी हाला
अपनी-अपनी है इच्छाएँ
अपना-अपना है प्याला
दिन में दूनी! रात चौगुनी
बढ़ती जाती अभिलाषी
भटक रहे मरुथल में प्यासे
मृग-तृष्णा! मधु का प्याला।।14
इक दौर नहीं! दो दौर नहीं
हर दौर यही होने वाला
हर वार मुझे चूमा करता
हर छाला का पीने वाला
सहलाया जाता तन मेरा
काली माटी का प्याला
था मतलब, पीने भर से फिर
दूर किया! मधु का प्याला।।15
सभी-बराबर हिस्सा पाते
हाला गृह-आने वाले
नहीं किसी को कम या ज़्यादा
वितरित की जाती हाला
इस पर भी है नहीं अपेक्षा
बदले में पा जाने की
फर्ज़-समझकर पी साक़ी से
झुककर लो! मधु का प्याला।।16
16 फरवरी 2007
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