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अनुभूति में रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' की रचनाएँ

कविताओं में-
काँटे मत बोओ
काननबाला
चुकने दो
तुम्हारे सामने
तृष्णा
द्वार खोलो
दीपक माला
धुंध डूबी खोह
पास न आओ
पावस गान
फिर तुम्हारे द्वार पर
मत टूटो
मेरा दीपक
ले चलो नौका अतल में

संकलन में
ज्योति पर्व-दीपावली
ज्योति पर्व- मत बुझना
तुम्हें नमन-बापू
ज्योतिपर्व- दीपक मेरे मैं दीपों की

  पावस गान

रिमझिम-रिमझिम बरस रहे मेघा वानीर-विजन के आसपास।
मधु की निर्झरिणी-सी मादक बहती रहती अल्हड़ बतास।
सावन का पावन प्रणय-मास!

चपला-सा चमक-चमक उठता दिग्वधुओं का अरविंद-हास।
उत्सुक हो प्यार-पगी उर्वी जा बैठी गिरि के पास-पास।
मनभावन पावन प्रणय-मास!

वन-वन में गिरि बालाओं का नवयौवन का कल-कल हुलास।
जिनमें बिंबित होता रहता पावस-परियों का केश-पाश।
यौवन का पावन प्रणय-मास!

ये वल्लरियाँ उच्छ्वसित, हरित : क्यों फूल-फूल भरती उसांस?
क्यों जाग उठी इन बाष्पाकुल वन-कन्याओं की मूक प्यास?
पुलकों का पावन प्रणय-मास!

इन श्यामल उज्ज्वल मेघों-सा ही मेरे प्राणों का प्रवास।
सूनी संध्या वंचित रजनी की अश्रु-विनिर्मित श्वास-श्वास।
सावन का पावन प्रणय-मास!

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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