रामेश्वर शुक्ल
'अंचल'
जन्म - १ मई १९१५ को
किशनपुर, फतेहपुर, उ.प्र. में।
कार्यक्षेत्र : १९४५ में
जबलपुर के राबर्टसन कालेज में अध्यापन की शुरुआत। मध्यप्रदेश के
शासकीय महाविद्यालयों के पूर्व आचार्य। जबलपुर विश्वविद्यालय एवं
रायपुर विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष। जबलपुर
विश्वविद्यालय एवं रायपुर विश्वविद्यालय के कला संकाय के पूर्व
डीन। मध्य प्रदेश भाषा अनुसंधान संस्था के पूर्व निदेशक। हिन्दी
साहित्य सम्मेलन के वर्तमान सभापति। कवि व कथाकार के रूप में
विख्यात।
सम्मान- जबलपुर विश्वविद्यालय
द्वारा डी.लिट् की मानद उपाधि। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
द्वारा साहित्य की दीर्घकालीन सेवा के लिए सम्मान। हिन्दी
साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति की मानद उपाधि।
राष्ट्रपति द्वारा विशेष सम्मान से विभूषित।
इसके अतिरिक्त म.प्र. साहित्य
सम्मेलन द्वारा भवभूति अलंकरण, काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा
विशिष्ट सम्मान, म.प्र. साहित्य सम्मेलन, आल इंडिया आर्टिस्ट
एसोसियेशन, मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति म.प्र., राष्ट्र भाषा
प्रचार समिति वर्धा, जबलपुर साहित्य संघ, भोपाल जन धर्म संस्थान,
महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आदि
अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
यहाँ प्रस्तुत श्री रामेश्वर
शुक्ल अंचल की सभी कविताएँ 'रामेश्वर शुक्ल अंचल समग्र' विजय
प्रकाश बेरी, हिन्दी प्रचारक संस्थान, पी ओ बाक्स ११०६, पिशाच
मोचन, वाराणसी, से ली गई हैं, इस पुस्तक में उनकी सभी कविताओं का
संग्रह है। |
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अनुभूति में
रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' की रचनाएँ
गीतों में-
काँटे मत बोओ
पावस गान
फिर तुम्हारे द्वार पर
मत टूटो
ले चलो नौका अतल में
अंजुमन
में-
तुम्हारे सामने
धुंध डूबी खोह
विविध-
काननबाला
चुकने दो
तुम्हारे सामने
तृष्णा
द्वार खोलो
दीपक माला
धुंध डूबी खोह
पास न आओ
मेरा दीपक
संकलन में
ज्योति पर्व-दीपावली
ज्योति पर्व- मत बुझना
तुम्हें नमन-बापू
ज्योतिपर्व-
दीपक मेरे मैं दीपों की
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