अनुभूति में
रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' की रचनाएँ
कविताओं में-
काँटे मत बोओ
काननबाला
चुकने दो
तुम्हारे सामने
तृष्णा
द्वार खोलो
दीपक माला
धुंध डूबी खोह
पास न आओ
पावस गान
फिर तुम्हारे द्वार पर
मत टूटो
मेरा दीपक
ले चलो नौका अतल में
संकलन में
ज्योति पर्व-दीपावली
ज्योति पर्व- मत बुझना
तुम्हें नमन-बापू
ज्योतिपर्व-
दीपक मेरे मैं दीपों की
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दीपक-माला
इन दीपों से जलते झलमल,
मेरे मन के गीत अधूरे।
इन दीपों से जलते मेरे स्वप्न,
हुए जो कभी न पूरे।
केवल एक रात जल कर,
बुझ जाएगी यह दीपक माला।
पर मरते दम तक न बुझेगा,
मुझमें तेरा रूप-उजाला।
तेरी रूप-शिखा में मेरे
अंधकार के क्षण जल जाते।
तेरी सुधि के तारे मेरे
जीवन को आकाश बनाते।
आज बन गया हूँ मैं इन दीपों का
केवल तेरे नाते।
आज बन गया हूँ मैं इन गीतों का
केवल तेरे नाते। |