अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ज्योति पर्व
संकलन

दीप जलाएँ

नाचें गाएँ दीप जलाएँ
दीवाली त्यौहार मनाएँ

अँधियारे में ज्योत जगा कर
कह दें प्यार की भाषा में
किरण बनें हम मुक्त गगन की
जीवन की परिभाषा में

नाचें गाएँ दीप जलाएँ
दीवाली त्यौहार मनाएँ

इक ज्योति नयनों में चमके
भावों के शुभ-शुभ अक्षत हों
रंगोली में चित्रित रंग
लिखे प्रेम के मुक्तक हों

नाचें गाएँ में दीप जलाएँ
दीवाली त्यौहार मनाएँ

मीठे गीत घुलें कंठ में
मृदु सरिता सी बहे रागिनी
दीप अनगिनत झिलमिल-झिलमिल
नृत्य नुपुर हो दमक यामिनी

नाचें गाएँ में दीप जलाएँ
दीवाली त्यौहार मनाएँ

- नीलम जैन

  

 जगमग है धरती का आँचल

जगमग है धरती का आँचल
फैला है घर-घर उजियारा
अंतर्मन के दीप जलाकर
दूर करें मन का अँधियारा।

एक अमावस को दीपों से
हमने पूनम बना दिया है
प्यार भरे सब संबंधों से
हर आँगन को सजा दिया है
लक्ष्मी और गणेश का पूजन
करता शुभ की ओर इशारा।
अंतर्मन के दीप जलाकर
दूर करें मन का अँधियारा।

सारा जग रौशन करने को
हम दीपों से जलते जाएँ
एक दीये की बाती से मिल
दुनिया भर के दीप जलाएँ
ज्योति-कलश के अमृत रस से
मीठा कर दें सागर खारा।
अंतर्मन के दीप जलाकर
दूर करें मन का अँधियारा।

-सुनील जोगी

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter