काँटे मत बोओ
यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम
से कम मत बोओ।
है अगम चेतना की घाटी, कमज़ोर
बड़ा मानव का मन,
ममता की शीतल छाया में, होता कटुता का स्वयं शमन।
ज्वालाएँ जब घुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मुँदे नयन,
होकर निर्मलता में प्रशांत बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
संकट में यदि मुस्का न सको, भय
से कातर हो मत रोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ।
हर सपने पर विश्वास करो, लो लगा
चाँदनी का चंदन,
मत याद करो, मत सोचो, ज्वाला में कैसे बीता जीवन।
इस दुनिया की है रीत यही - सहता है तन, बहता है मन,
सुख की अभिमानी मदिरा में, जो जाग सका वह है चेतन।
इसमें तुम जाग नहीं सकते, तो
सेज बिछाकर मत सोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ।
पग - पग पर शोर मचाने से, मन
में संकल्प नहीं जगता,
अनसुना - अचीन्हा करने से, संकट का वेग नहीं थमता।
संशय के सूक्ष्म कुहासों में, विश्वास नहीं क्षण भर रमता,
बादल के घेरों में भी तो, जयघोष न मारुत का थमता।
यदि बढ़ न सको विश्वासों पर,
साँसों के मुर्दे मत ढ़ोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ
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