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अनुभूति में रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' की रचनाएँ

कविताओं में-
काँटे मत बोओ
काननबाला
चुकने दो
तुम्हारे सामने
तृष्णा
द्वार खोलो
दीपक माला
धुंध डूबी खोह
पास न आओ
पावस गान
फिर तुम्हारे द्वार पर
मत टूटो
मेरा दीपक
ले चलो नौका अतल में

संकलन में
ज्योति पर्व-दीपावली
ज्योति पर्व- मत बुझना
तुम्हें नमन-बापू
ज्योतिपर्व- दीपक मेरे मैं दीपों की

  ले चलो नौका अतल में!

उड़ रहा उन्मत्त दुर्दिन आज जाग्रत प्राण मेरे!
आज अंतर में प्रलय है, लुट रहा उन्माद घेरे,
किन्तु जाना ही पड़ेगा
इस तृषावाहन अनल में।

बाँध दे लहरें तरी से हम पथिक तूफ़ान-धारी,
चिर विसर्जन स्वप्न सजते हम प्रवाहों के पुजारी
क्षुब्ध गति का स्रोत प्रतिक्षण,
ले चलो नौका अतल में।

इस पिपासा के भँवर मे प्रज्वलित आवर्त चलते,
लुट रहा उद्दाम यात्री, श्वास के संचय निकलते,
हम महातम के बटोही,
ले चलो नौका अतल में।

तीर लगता आज सूना-सा, सूखों के व्यर्थ संचय,
रोक लेगा कौन जीवन विश्व-पथ का एक परिचय,
यह महावाणी, अलक्षित, गर्त
है घनघोर जल में।

यह विफल तृष्णा पराजित प्राण की जलती निशानी,
यह अकंपित-सी तरी व्याकुल बटोही की कहानी,
आज नूतन पथ सजाते
ले चलो नौका अतल में।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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