अनुभूति में
दीपिका जोशी 'संध्या'
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पाठशाला
जाना है
एक बार फिर पाठशाला जाना है
दौड़ कर बैठूँगा मैं उसी बेंच पर
राष्ट्रगान सब के साथ मिल कर गाना है
नई कापी की खुशबू सूँघ कर
नाम मुझे उस पर माँ से लिखवाना है
इसलिए एक बार फिर पाठशाला जाना है
छुट्टी होते ही वॉटर बॉटल छोड़कर
नलके को हाथ लगा कर पीना पानी है
दौड़ते भागते डब्बा ख़तम कर
नमक मिर्च से बेर औ' इमली खानी है
यदि बारिश आए तो पाठशाला से
छुट्टी शायद मुझे कल ही करवानी है
गहरी नींद सोना है, यही ख्वाब ले कर
अचानक छुट्टी का आनंद मुझे पाना है
इसलिए एक बार फिर पाठशाला जाना है
लंबी घंटी बजते ही हुई घर की छुट्टी
दोस्तों संग साइकिल रेस लगानी है
दिवाली की छुट्टी की राह देखते
पढ़ पढ़ के छमाही परीक्षा भी निभानी है
खूब अनार चकरी कल चलाए थे
अधजली फुलझड़ी फिर ढूँढ़ लानी है
छुट्टी का यह किस्सा, दोस्तों को सुनाना है
इसलिए एक बार फिर पाठशाला जाना है
ज़िम्मेदारी के बोझ से अच्छा है
मैं उठा लूँगा भारी बस्ता मेरा
वातानुकूलित ऑफिस से अच्छा है
स्कूल में बिन पंखे का कमरा मेरा
अकेली कुर्सी से लाख अच्छा है
कक्षा का टूटा हुआ बेंच मेरा
दो की बेंच पर तीन दोस्तों को बैठाना है
इसलिए एक बार फिर पाठशाला जाना है।
सुना था, बचपन बहुत प्यारा होता है
कुछ–कुछ समझ में आज आने लगा है
सच में यह सच है? सर से पूछकर आना है
इसलिए एक बार फिर पाठशाला जाना है।
२४ अक्तूबर २००५ |