अनुभूति में
दीपिका जोशी 'संध्या'
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कोमल मन
हरदम भरा भावनाओं से
दुख में डूबे दुखियारे को
सहेजता रहता, मेरा कोमल मन।
खुशमिजाज है यह
हास्यविभोर हो उठता खुशी में
खिलखिलाता है, मेरा कोमल मन।
दिल से दिल मिलते रहें
सुख के कण कण जियें
यही गुनगुनाता है, मेरा कोमल मन।
पर तनहाई में डुबा डुबा
इसे न कोई जान पाया
क्यों? यही सोचता रहा, मेरा कोमल मन
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