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दिल की ग़म से दोस्ती
 दिल की ग़म से दोस्ती होने लगी। 
ज़िन्दगी से दिल्लगी होने लगी। 
जब मिली उसकी निगाहों से मेरी 
उसकी धड़कन भी मेरी होने लगी। 
ज़ुल्फ़ की गहरी घटा की छाँव में 
ज़िन्दगी में ताज़गी होने लगी। 
बेसबब जब वो हुआ मुझ से ख़फ़ा 
ज़िन्दगी में हर कमी होने लगी। 
बह न जाएँ आँसू के सैलाब में 
साँस दिल की आखिरी होने लगी। 
आँसुओं से ही लिखी है दास्ताँ 
भीग कर अब धुंधली होने लगी। 
जाने क्यों मुझ को लगा कि चाँदनी 
तुझ बिना शमशीर सी होने लगी। 
आज दामन रो के क्यों गीला नहीं 
आँसुओं की भी कमी होने लगी। 
तश्नगी बुझ जाएगी आँखों की अब 
उसकी पलकों में नमी होने लगी। 
डबडबाई आँखों से झाँको नहीं 
इस नदी में बाढ़-सी होने लगी। 
इश्क़ की तारीक गलियों में जहाँ 
दिल जलाया, रौशनी होने लगी। 
आ गया है वो तसव्वुर में मेरे 
दिल में कुछ तसकीन-सी होने लगी। 
मरना हो, सर यार के काँधे पे हो 
मौत में भी दिलकशी होने लगी। 
६ अक्तूबर २००८  |