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 अनुभूति में 
महावीर शर्मा की रचनाएँ- 
नई ग़ज़लें- 
अदा देखो 
जब वतन छोड़ा 
दिल की ग़म से दोस्ती 
भूलकर ना भूल पाए 
सोगवारों में 
  
अंजुमन में- 
        
अधूरी हसरतें  
ग़ज़ल 
        
ज़िन्दगी से दूर 
        
पर्दा हटाया ही कहाँ है? 
                  प्रेम डगर 
        
        बुढ़ापा 
        
        
        ये ख़ास दिन 
कविताओं में- 
                  दो मौन 
संकलन में- 
दिये जलाओ- दीप जलते रहे 
                  चराग 
आँधियों में 
                 मौसम-भावनाओं 
के मौसम                   
                  फागुन के 
रंग-होली का संदेशा  
                  
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 बुढ़ापा 
 
जवाँ जब वक़्त की दहलीज़ पर आंसू बहाता है, 
बुढ़ापा ज़िन्दगी को थाम कर जीना सिखाता है। 
 
तजुर्बे उम्र भर के चेहरे की झुर्रियां बन कर, 
किताबे-ज़िन्दगी में इक नया अंदाज़ लाता है। 
 
पुराने ख़्वाब को फिर से नई इक ज़िन्दगी देकर, 
अधूरे से पलों को फिर कहानी में सजाता है। 
 
किसी के चश्म पुर-नम दामने-शब में अंधेरा हो, 
उमीदों की शमां बुझती हुई, फिर से जलाता है। 
 
क़दम जब भी किसी के बहक जाते हैं जवानी में, 
बुझी सी ज़िन्दगी में इक नई आशा दिलाता है। 
24 जून 2007  
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