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अधूरी हसरतें 
 कुछ अधूरी हसरतें अश्के-रवाँ में बह गए 
क्या कहें इस दिल की हालत, शिद्दते-ग़म सह गए। 
गुफ़तगू में फूल झड़ते थे किसी के होंट से 
याद उनकी ख़ार बन, दिल में चुभो के रह गए। 
जब मिले हम से कभी, इक अजनबी की ही तरह 
पर निगाहों से मेरे दिल की कहानी कह गए। 
यूं तो तेरा हर लम्हा यादों के नग़मे बन गए 
वो ही नग़मे घुट के सोज़ो-साज़ दिल में रह गए। 
दिल के आईने में उसका, सिर्फ़ उसका अक्स था 
शीशा-ए-दिल तोड़ डाला, ये सितम भी सह गए। 
दो क़दम ही दूर थे, मंज़िल को जाने क्या हुआ 
फ़ासले बढ़ते गए, नक़्शे-क़दम ही रह गए। 
ख़्वाब में दीदार हो जाता तेरी तस्वीर का 
नींद अब आती नहीं, ख़्वाबी-महल भी ढह गए। 
७ अप्रैल २००८  |