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 मेरा सरोकार, मेरा संवाद 
 
मेरा संवाद, 
उनसे है, 
जो साबुत के साबुत खड़े हैं 
खंडित मानवताओं के 
महासमर में। 
मेरा सरोकार, 
उनसे हैं, 
जो झुकी पीठ से 
रोपते जा रहे हैं 
जीवन की खाद, 
सीधी-सीधी कतारों में। 
मेरा अभिप्राय, 
उनसे है, 
जो अपनी आँखों से 
सोख रहें हैं 
संवेदनाओं का मर्म। 
मैं उनसे, 
मुख़ातिब हूँ, 
जो ईश्वर की ग़लतियों को 
सहजता से लिए हुए, 
सीख रहे हैं 
दुनियादारी की परिभाषा। 
1 दिसंबर 2006 
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