दुख अपना रास्ता
                   
                   
                  दुख अपना रास्ता खुद 
                  ढूँढ लेता है 
                  सपनों को हकीकत के बीच से गुज़र कर 
                  रास्ता तैयार करना पड़ता है 
                  सुख हमेशा उजाले में लिपटा रहा 
                  उठाने भर के देरी पर निभर 
                  दुख ने अपना रास्ता खुद तैयार 
                  किया 
                  इसमें हैरत नहीं कि  
                  हरफनमौला दुख ने अनेक कलाओं में  
                  अपना सिर खपाया 
                  सावभौमिक दुख का 
                  कौन-सी भाषा में अनुवाद नहीं हुआ 
                  सैयद हैदर रज़ा की हर तस्वीर की
                   
                  बिन्दु के विशाल घेरे में 
                  दुख ही तो नहीं 
                  फैज की नज़्मों में दुख मुबारक बेगम अपनी  
                  आवाज़ की कंपाकपाहट में समेट लेती हैं  
                  ढीले पढ़ते समय को दुरुस्त करते हुए दुख  
                  सदा साथ-साथ ही रहा  
                  दुख के मुझ पर इतने अहसान थे कि 
                  दुख को टाँक दिया सीधे-सीधे मैनें अपनी आत्मा के साथ 
                  अब दुख का  
                  एक एक हिस्सा बारी-बारी से करवट लेता है 
                  तो बारी-बारी से आत्मा में हुक उठती है 
                  सुख को अपना रास्ता बनाना पड़ता है पर 
                  दुख अपना रास्ता खुद ढूँढ़ लेता है 
                  दुख के मध्य से गुज़र कर पारस बनी 
                  सुख के करीब आ कर मरुस्थलीय धरा 
                  प्रेम से गुज़र कर प्यास 
                  अंधेरे से आँसू सोखे 
                  उजाले के पास से राख पाई 
                  दुख से मिला खालिस दुख 
                  इस बीच दुख मुझे पूरा का पूरा निगल चुका था और  
                  मैंने अपने सारे हथियार डाल दिए थे। 
                  १४ सितंबर २००९  |