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 मेरा होना न होना  
आकाश का विशाल वैभव, 
पृथ्वी की गहरी तरलता, 
पौधों में सिमटी हरीतिमा, 
तितलियों की शोख चंचलता, 
जुगनुओं का जलता-बुझता तिलिस्म, 
चौंसठ करोड़ देवी-देवताओं के वरदान, 
सौ करोड़ जनमानस की भावनाएँ, 
जैसे इतना सब काफ़ी नहीं था, 
मेरे हाथों में कलम भी थमा दी गई, 
और कहा गया, 
कैद करो 
आकाश, पृथ्वी, पर्वत, तितलियाँ, 
जुगनू, वेद-पुराण, 
अतीत, भविष्य, वर्तमान, 
अब ये सब मिलकर 
मेरा होना, न होना 
तय करते हैं। 
1 दिसंबर 2006  
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