अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अभिरंजन कुमार की रचनाएँ—

नई रचनाओं में—
तुम्हारी आँखों के बादलों में
बातें तुम्हारी प्रिये...
मैं अनोखा हो गया हूँ

हाइकु में—
जाड़े का हाइकु¸ प्रियतमा के लिए¸ महानगर के हाइकु¸ गाँव के हाइकु¸ संदेश

कविताओं में—
चालू आरे नंगा नाच
भस्मासुर जा रहा
हँसो गीतिक हँसो
होली बीती

 

तुम्हारी आँखों के बादलों में...

तुम्हारी आँखों में मेरी आँखों का एक घरौंदा है,
इस घरौंदे में न कोई देहरी है, न कोई दीवार है।
बस प्यार की पीठ पर बैठी एक धरती है
और एक आसमान है,
जो प्यार ही के पंखों पर सवार है।

तुम्हारी आँखों के काजल में
मेरी सपनों-सी उड़ती हुई रातों का रंग,
मेरी दरिया-सी बहती हुई रातों की गहराई है।
हर रोज़ जो शाम के पहाड़ से उतार लाती है चाँदनी
और सुबह-सुबह किरणों की करती बुआई है।

तुम्हारी आँखों की पुतलियों में
मेरी उजली-उजली परियाँ नाचती हैं
मेरी हवा, मेरी पत्तियाँ सुर-ताल देती हैं।
तुम्हारी पिपनियों पर आकर ठहर जाता है
ओस की बूँदों जैसा कुछ
और मेरी हर दूब हथेलियाँ खोलकर
उन्हें सँभाल लेती है।

तुम्हारी आँखों के बादलों में
मेरी निर्मल नदियों का पानी है।
नीचे की धरती धानी है
और ऊपर का आसमान आसमानी है।
तुम्हारी आँखों के गीले कोरों में
मेरी ही आँखों की नमी है।
जब तक तुम्हारी आँखों में मेरी आँखें हैं,
ये मेरी साँस क्यों थमी की थमी है?

तुम्हारी आँखों के नीले अंबर में
मेरी चिड़िया चहचहाती है
जैसे तन-बदन पर पहली-पहली बार
पहला-पहला पर निकला हो।
ख़ुद तुम्हारी अपनी आँखों के चूजे भी
कुछ कम नहीं बोलते
कंठ से जैसे पहली-पहली बार
पहला-पहला स्वर निकला हो।

तुम्हारी आँखों में अपने पंख फरफराती हैं तितलियाँ
हिरणियों के बच्चे उछल-उछल खेलते हैं,
लंगूरों के बच्चे झूलते हैं झूला।
तुम्हारी आँखों में जाना
क्या जीवन के भी पार जाने जैसा है?
आखिर मैं क्यों सब कुछ अपना इन्हीं में आ भूला?

तुम्हारी गुलाबी पलकों से हमारी सेज के फूल झरते हैं
तुम्हारी निगाहें बिछाती हैं बिछौना।
मुझे बस सपनों की एक नींद दे दो
जो चाहे कभी टूटे या टूटे ना!

सितंबर २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter