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अनुभूति में अभिरंजन कुमार की रचनाएँ—

नई रचनाओं में—
तुम्हारी आँखों के बादलों में
बातें तुम्हारी प्रिये...
मैं अनोखा हो गया हूँ

हाइकु में—
जाड़े का हाइकु¸ प्रियतमा के लिए¸ महानगर के हाइकु¸ गाँव के हाइकु¸ संदेश

कविताओं में—
चालू आरे नंगा नाच
भस्मासुर जा रहा
हँसो गीतिक हँसो
होली बीती

 

बातें तुम्हारी प्रिये...

लहराती नदियों-सी होकर भी गहरी।
बातें तुम्हारी प्रिये क्यों ठहरी-ठहरी?

मैं तो एक झरना हूँ, थम जाऊँ कैसे?
छाती पे पत्थर की जम जाऊँ कैसे?
मीन-सी तड़प रही है मेरी प्रतीक्षा में
देखो तुम्हारी प्रिये भी लहरी-लहरी।

मैं तो एक बादल हूँ, बाहों में भर लो।
काजल समान प्रिये आँखों में धर लो।
ख़त्म नहीं होऊँगा किंतु तेरे अंबर से
बार-बार बरसूँगा संझा-दुपहरी।

मन पे उदासी न छाने दो इक पल।
आज मुझे रोको न, गाने दो इक पल।
तेरे सितार भी जो उँगलियों से छेड़ दें
गीत लिखूँ या कि कोई कविता सुनहरी।

छाँव तो धूप की छाया है प्रियतम।
धूप संग पड़ते हैं छाँव के भी क़दम।
धूप को जो ओढ़ लो तो छाँव बिछ जाती
आँचल-सी फिरती है ज्यों फहरी-फहरी।

लहराती नदियों-सी होकर भी गहरी।
बातें तुम्हारी प्रिये क्यों ठहरी-ठहरी?

सितंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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