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अनुभूति में अभिरंजन कुमार की रचनाएँ—

नई रचनाओं में—
तुम्हारी आँखों के बादलों में
बातें तुम्हारी प्रिये...
मैं अनोखा हो गया हूँ

हाइकु में—
जाड़े का हाइकु¸ प्रियतमा के लिए¸ महानगर के हाइकु¸ गाँव के हाइकु¸ संदेश

कविताओं में—
चालू आरे नंगा नाच
भस्मासुर जा रहा
हँसो गीतिक हँसो
होली बीती

 

मैं अनोखा हो गया हूँ

मैं अनोखा हो गया हूँ!

चार पद, कर चार, दो तन, दो वदन वाला हुआ
धड़कनें दो फूल- गूँथा एक में- माला हुआ
होंठ मेरे ही नशीले हैं शपथ जिनके लिए
स्वयं साक़ी, स्वयं प्याला, स्वयं मृदु हाला हुआ
विश्व के लोचन तुम्हें मैं आज धोखा हो गया हूँ!

ताड़-तरु तर झील के कूलों झितिज पर जा गिरूँ
या जलद में नील नभ में, सित दुकूलों पर तिरूँ
लड़खड़ाते शिथिल क़दमों नपें हिममय घाटियाँ
भावनाएँ मैं रुई-सी मौन हो उड़ता फिरूँ
पूछ देती माँ हिला कर- जग रहा या सो गया हूँ!

पेड़-बादल छाँह-अमृत पवन पुलकन याचते
विहग मुझसे गीत माँगें, नदी निज पथ के पते
आज मेरी ये भुजाएँ अमित को फैली हुईं

फूल-काँटे, बर्फ़-शोले एकसम हो बाँचते
झाँक मुझमें देख जन्नत का झरोखा हो गया हूँ!

मैं अनोखा हो गया हूँ!

सितंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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