| यों न होठों से यों न होठों से ही बस 
                  लब्ज़े-मुहब्बत बोलतेबात तो तब थी जो बन के मेरी किस्मत बोलते
 राह का पत्थर समझ कर तुमने तो 
                  ठुकरा दियाजो तराशा तुमने होता बन के मूरत बोलते
 पत्थरों के देश में ये आइने 
                  क्यों चुप रहेटूटना ही था जो गिर के, कैसी दहशत, बोलते
 फूल के होठों की छुअनें गर मिली 
                  होतीं तो फिरकोरे-कागज़ भी ये बन कर प्यार का खत बोलते
 बोलना ही था 'रमा' तो इस जहाँ 
                  के सामनेतेरे चेहरे में बसी है उसकी सूरत बोलते
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