| अब सुहानी शाम 
                  अब सुहानी शाम गहराने लगी हैचाँदनी ये मुझको समझाने लगी है
 लो हवा के होंठ भी गाने लगे हैंयाद अपनों की बहुत आने लगी है
 अपनी पलकों का ही घूँघट ओढ़कर 
                  अबचुपके-चुपके आँख शरमाने लगी है
 क्या हुआ है जो मेरी आँखों की 
                  गागरआँसुओं का नीर छलकाने लगी है
 बन्द कमरे में घुटी ये साँस 
                  मेरीज़िन्दगी का द्वार खटकाने लगी है
 फूल-सी आँखों में अब तक खिल रही 
                  थीक्यों दिये की लौ वो मुरझाने लगी है
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