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अनुभूति में देवमणि पांडेय
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पाँच मुक्तक

अंजुमन में-
इंद्रधनुष में
इस जहाँ मे
कौन सुने अब
खूब लुभाती मुंबई
चाहत के हर मुकाम पर
छम छम करती
जग में
दिल के ज़ख़्मों को
दिलवालों की बस्ती
नहीं चलता
ना हँसते हैं ना रोते है
हाल अपना

 

  इस जहाँ में

इस जहाँ में प्यार महके जिन्दगी बाकी रहे
ये दुआ माँगो दिलों में रोशनी बाकी रहे।

आदमी पूरा हुआ तो देवता बन जायेगा
ये जरूरी है कि उसमें कुछ कमी बाकी रहे।

हर किसी से दिल का रिश्ता काश हो कुछ इस तरह
दुश्मनी के साये में भी दोस्ती बाकी रहे।

दिल के आंगन में उगेगा ख्वाब का सब्जा जरूर
शर्त है आँखों में अपनी कुछ नमी बाकी रहे।

लब पे नगमा वफा का दिल में ये जज्बा भी हो
लाख हों रूसवाइयाँ पर आशिकी बाकी रहे।

दिल में मेरे पल रही है यह तमन्ना आज भी
इक समंदर पी चुकूँ जब तिश्नगी बाकी रहे।

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