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अनुभूति में देवमणि पांडेय
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पाँच मुक्तक

अंजुमन में-
इंद्रधनुष में
इस जहाँ मे
कौन सुने अब
खूब लुभाती मुंबई
चाहत के हर मुकाम पर
छम छम करती
जग में
दिल के ज़ख़्मों को
दिलवालों की बस्ती
नहीं चलता
ना हँसते हैं ना रोते है
हाल अपना

 

  चाहत के हर मुकाम पर

चाहत के हर मुकाम पर रूसवाइयाँ मिलीं
अपनों की भीड़ में हमें तनहाइयाँ मिलीं।

इस दौर में ये बात अजूबे से कम नहीं
झूठों की बातचीत में सच्चाइयाँ मिलीं।

कितने दिलों में आज भी जिंदा हैं कुछ रिवाज
पक्के घरों के बीच में अंगनाइयाँ मिलीं।

जितने भी हम करीब गये डूबते गये
आंखों में उसकी झील सी गहराइयाँ मिलीं।

पलकों ने जब सजाया है कोई हसीन ख्वाब
वादी में दिल की गूँजती शहनाइयाँ मिलीं।

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