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अनुभूति में देवमणि पांडेय
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पाँच मुक्तक

अंजुमन में-
इंद्रधनुष में
इस जहाँ मे
कौन सुने अब
खूब लुभाती मुंबई
चाहत के हर मुकाम पर
छम छम करती
जग में
दिल के ज़ख़्मों को
दिलवालों की बस्ती
नहीं चलता
ना हँसते हैं ना रोते है
हाल अपना


 

  हाल अपना

हाल अपना किसी से मत कहिए
इससे अच्छा है आप चुप रहिए

देख कर लोग फेर लें नज़रें
सबकी नज़रों में ऐसे मत गिरिए

जो भी दिल आपका इजाज़त दे
काम हर वक्त बस वही करिए

सुख की कीमत तभी तो समझेंगे
ये ज़रूरी है कुछ तो दुख सहिए

आज सच को सराहेगी दुनिया
ऐसे धोखे में आप मत रहिए

मिल ही जाएगी एक दिन मंज़िल
शर्त इतनी है राह खुद चुनिए

ज़िन्दग़ी का यही तक़ाज़ा है
वक़्त मुश्किल हो, फिर भी चुप रहिए

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