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अनुभूति में देवमणि पांडेय
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अंजुमन में-
इंद्रधनुष में
इस जहाँ मे
कौन सुने अब
खूब लुभाती मुंबई
चाहत के हर मुकाम पर
छम छम करती
जग में
दिल के ज़ख़्मों को
दिलवालों की बस्ती
नहीं चलता
ना हँसते हैं ना रोते है
हाल अपना


 

  इंद्रधनुष में

इंद्रधनुष में जैसे रंग
ख्वाब रहे हैं मेरे संग

उस चेहरे ने दस्तक दी
तन मन में भर गई उमंग

प्रेम नगर में पता चला
चाहत की गलियाँ हैं तंग

मैं कुछ ऐसे तन्हा हूँ
जैसे कोई कटी पतंग

खुशबू ने फूलों से कहा
जीना मरना तेरे संग

लमहे में सदियाँ जी लें
हम तो ठहरे यार मलंग

२८ अप्रैल २००८

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