अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
ऐसे तेरा ख़याल
कुछ खुशियाँ
ज़र्द पत्ते
दिल के टुकड़े
ग़म मिलते हैं

छंदमुक्त में-
कर्फ्यू

 

 

ज़र्द पत्ते

जर्द पत्ते कुछ नमी पाकर हरे होने लगे
दुश्मनो के दरमियाँ फिर मश्वरे होने लगे

बोलना भी जुर्म है यह सोचकर खामोश था
मेरी खामोशी पे फिर भी तवसिरे होने लगे

इन चरागों की हिफाजत में जरा उट्ठे कदम
अब हवाओं के झकोरे सिर-फिरे होने लगे

जब भी कोई आईना टूटा तुम्हारे शहर में
मेरे दिल के टूटने के तजकिरे होने लगे

दोष क्यों दें अपनी किस्मत को हमी हैं मुरतकिब
काम खुद हमसे हमारे अब बुरे होने लगे

लोग अपने आप के अंदर सिमट कर रह गये
मुख्तसर अब जिन्दगी के दायरे होने लगे

दोस्ती कीजे ज़रा 'ज़ाकिर' सँभलकर आजकल
दोस्त भी हालात पर खोटे खरे होने लगे

९ जुलाई २००५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter