अनुभूति में
शैलाभ शुभिशाम की रचनाएँ-
तुकांत में-
अर्पण कर लो
इक तू रंग
हार जीत
मैं स्वप्न नहीं तेरा
रिसते हुए रक्त ने
रुकी हुई सी |
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मैं स्वप्न नहीं तेरा
मैं स्वप्न नहीं तेरा ऐ कांची, मुझको इसका शोक नहीं
मैं अश्रु बना ना किसी नयन का,
मुझको इसका शोक नहीं,
शोक नहीं कि बना नहीं मैं, तेरे साँसों की इक लय भी
शोक नहीं कि बना ना धड़कन, शोक नहीं ना बना हृदय भी।
बाँध के तुझको बनूँ विजेता, मेरी ऐसी चाह नहीं,
जीतूँ मैं द्वापर और त्रेता,
मेरी ऐसी चाह नहीं,
मेरी चाह नहीं कि तुझको, मैं अपने कण कण में कर दूँ,
चाह मेरी बस यही अधूरी, तुझको मैं अब अर्पण कर दूँ।
आसक्त नहीं अब मेरी राहें, मैं तुझसे आसक्त नहीं हूँ।
आसक्त नहीं अब तेरी बाहें, मैं तुझसे आसक्त नहीं हूँ।
आसक्त नहीं तुझसे अब मैं हूँ, मरीचिका अब रोक नहीं हैं,
चला अडिग सन्यासी पथ पर,
कि उसका अब ये लोक नहीं है।
९ मार्च २००५ |