अनुभूति में
शैलाभ शुभिशाम की रचनाएँ-
तुकांत में-
अर्पण कर लो
इक तू रंग
हार जीत
मैं स्वप्न नहीं तेरा
रिसते हुए रक्त ने
रुकी हुई सी |
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अर्पण कर लो
अर्पण कर लो शस्त्र मेरा,
पहचान मेरी भी अर्पण कर लो,
स्वीकार करो तुम अर्पण रविवर,
मुझको अपना दर्पण कर लो,
रंजित हुई लहू से मिट्टी, रंजित हुई मेरी काया भी,
रंजित हुई मेरी ये बाहें, रंजित हुई मेरी छाया भी।
निश्चय तुम जीतोगे रविवर, निश्चय मेरी हार ही होगी
निश्चय मेरा लहू बहेगा, क्षमा मेरी स्वीकार ना होगी,
लयबद्ध मेरी सांसें, न होंगी, काया भी लयबद्ध न होगी,
रणवीर अकेले तुम होगे फिर,
फिर कभी मेरी जयकार न होगी।
पहचान मेरी अब हार है लेकिन,
तुम भी शव पे खेल चुके हो,
हारा आज कर्ण है लेकिन,
ए अर्जुन तुम भी ग़म को झेल चुके हो,
मैं तो कण हूं, मिट जाऊँ
गा पल में, इस मिट्टी की लाली में,
पर किश्त–किश्त में तुम धरोगे,
किश्त–किश्त तो खेल चुके हों।
९ मार्च २००५ |