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अनुभूति में शैलाभ शुभिशाम की रचनाएँ-

तुकांत में-
अर्पण कर लो
इक तू रंग
हार जीत
मैं स्वप्न नहीं तेरा
रिसते हुए रक्त ने
रुकी हुई सी
  इक तू रंग

इक तू रंग हकीकत का है, इक तू रंग पुराना है,
इक में धूमिल सी सच्चाई, इक में स्वप्न सुहाना है,
इक में मेरी यादें हैं बस, चहुं ओर वीराना है,
इक में मेरी कविता है तू, और मेरी निरवाणा है।
इक में साँसें तेरी हरदम, तेरी हरदम परछाई है,
इक में मेरा झूठ छिपा है, इक में तेरी सच्चाई है।
इक में रुका हुआ सा जीवन, रुकी हुई हर इक आहट है,
इक में मेरा दर्पण है तू, झुकी हुई हर इक चाहत है।
इक में मेरा बीता हुआ कल तू, कोई काल पुराना है,
इक में मेरा वर्तमान तू, मेरा नया ज़माना है,
इक तू रंग हकीकत का है, इक तू रंग पुराना है,
इक में धूमिल सी सच्चाई, इक में स्वप्न सुहाना है।

९ मार्च २००५

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