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अनुभूति में शैलाभ शुभिशाम की रचनाएँ-

तुकांत में-
अर्पण कर लो
इक तू रंग
हार जीत
मैं स्वप्न नहीं तेरा
रिसते हुए रक्त ने
रुकी हुई सी
  हार जीत

हार जीत अब प्रश्न नहीं हैं, प्रश्न नहीं तेरी अभिलाषा
प्रश्न नहीं मेरा ये चिंतन,
प्रश्न नहीं अब कोई ज़रा सा,

तुम अर्धसत्य, तुम विवरण मेरे, तुम मेरी ही संरचना हो
तुम दर्द कहीं, मुस्कान कहीं, तुम कहीं व्यूह की रचना हो।
तुम काल कहीं, तुम रूप कहीं, कहीं पे तुम खुद मौलिकता हो,
ब्रह्म कहीं, ब्रह्मांड कहीं तुम, तुम कहीं पे नन्हीं सी कविता हो
कहीं अनु हो, कहीं अनुशासन, कहीं छंद हो, कहीं चाँद तुम
कहीं नीर तुम, कहीं हो ज्वाला,
कहीं जन्म तुम, कहीं चिता हो।

तेरा प्रश्न पता करने को, जाने क्या क्या मंज़र देखा
कुछ आँखों में तपती गर्मी, कुछ आँखों में खंजर देखा।
कुछ में देखा अक्स तुम्हारा, कुछ में चुप्पी की इक भाषा,
कुछ आँखों में रातें देखी, कुछ में देखी दिन की आशा।
हार जीत अब प्रश्न नहीं है, प्रश्न नहीं तेरी अभिलाषा
प्रश्न नहीं मेरा ये चिंतन,
प्रश्न नहीं अब कोई ज़रा सा...

९ मार्च २००५

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