अनुभूति में सत्यवान शर्मा
की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अहंकार
तेरी रचना
पथिक
परमात्मा
मैं बढ़ता ही जाऊँगा
रिश्ते
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रिश्ते
रिश्तों की बेड़ियाँ देखो
रेवडियाँ बँटती है तो हजार हाथ
बीमारियाँ बढ़ी तो नहीं कोई साथ
स्वार्थ हासिल हुआ तो रिश्ता है
नहीं तो चल भैया रास्ता है
जमाने ने रिश्ते के मायने बदल दिये
रिश्ता अब बड़ा सस्ता है
काम बना तो भाई साहब
काम नहीं बनता तो कौन साहब
"ओबलाईज" संस्कृति आ गई है।
पैसे और पद की भूख बढ़ गई है
अब रिश्तों में वह मिठास कहाँ
हँसी ठिठोली तो केवल
दिखावटी रह गई है।
माँ की ममता
और
भाई का प्यार
केवल फिल्मी जुबानी है
यह केवल मेरी ही नहीं
घर घर की कहानी है।
९ अक्तूबर २००४ |