अनुभूति में सत्यवान शर्मा
की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अहंकार
तेरी रचना
पथिक
परमात्मा
मैं बढ़ता ही जाऊँगा
रिश्ते
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अहंकार
कुछ लम्हों का अहंकार
जीवन भर कोसता बार बार
अपने साथ लेकर आता हार
सब करते तिरस्कार
उपाय है एक करो परोपकार
अतिथियों का सत्कार
अपनों की मनुहार
सबसे प्यार तब जाएगा हार
ये दुष्ट अहंकार
९ अक्तूबर २००४ |