अनुभूति में सत्यवान शर्मा
की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अहंकार
तेरी रचना
पथिक
परमात्मा
मैं बढ़ता ही जाऊँगा
रिश्ते
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परमात्मा
हिम्मत से डटे रहो
अपने अन्दर झाँको
आवाज आएगी
वह कभी नहीं घबराएगी
सही रास्ता बताएगी
वीर तुम निकल पड़ो उस रस्ते पर
फिर भले तपती दुपहरी हो
या बरसती अमावस की रात
मुँह मत मोडो
बढ़ते रहो वही तुम्हारी शक्ति है
उसे कमजोर मत करो
उसकी आवाज को पहचानो
जीवन की सत्यता जानो
उसे आत्मा कहते हैं
जब वह दूसरे की भलाई के लिए उठती है
तो 'पर' का भला होता है।
तब वही आत्मा साक्षात् परमात्मा होती है।
९ अक्तूबर २००४ |