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तेरे बिन

वक्त कटता है पर दिन गुज़रता नहीं है
वो चेहरा मेरी आंखों से उतरता नहीं है

रगों में दौड़ता है उससे मिलने का ख्व़ाब
मगर ख्व़ाब ये लफ़्ज़ों में उभरता नहीं है

हवाओं की सांसें थमने लगी है आजकल
चंद रोज़ हुए इधर से वो गुज़रता नहीं है

जो ताउम्र बनाता रहा है रेत के महल
उसका दिल किसी सेहरा से डरता नहीं है

रेत से इक ख्व़ाब को उसने जब से है छुआ
चले लाख आंधियां पर ये बिखरता नहीं है

कुछ देर और रोएगा चुप हो जाएगा
दिल ये नादां बच्चा है सुधरता नहीं है

मैं आखिरी हिचकी से पहले ये बता दूँ
बिन तेरे जीने को अब जी करता नहीं है

चुपके से उस गली में रुक जाना यारों
यूं आशिक का जनाजा कहीं ठहरता नहीं है

24 जून 2007

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