चेहरों के पीछे
उसके हर चेहरे पे मुझको
इक नया चेहरा मिला
हर नए चेहरे में भी तो
मुझको वो दोहरा मिला
पुकार के छिपने की आदत
उसकी ये अच्छी नहीं
आवाज़ के पीछे गया पर
मुझको तो कोहरा मिला
पानी पे यों ही खींच कर
लिक्खा था नाम उसका
नाम कैसे मिट गया जब
पानी ही ठहरा मिला
तिश्नगी आवारगी
मेरा मुकद्दर बन गई
मुझको तो दरिया के भीतर
भी सदा सेहरा मिला
उसके हर चेहरे पे मुझको
इक नया चेहरा मिला 9
नवंबर 2005
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