अनुभूति में
नरेश सोनी की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
जी करता है
तेरे बिन
बहन की याद
मुसकुराना मत छोड़ना
वो छोटा सा पत्थर
कविताओं में-
चेहरों के पीछे
ये शहर
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ये शहर
इस शहर में जाने क्यों
दीवारें बहुत हैं,
तनी-तनी सी रहती मगर दरारें बहुत हैं।
ये आसमां भी रोज़ ज़रा सा झुक
जाता है मुझ पर,
हवाएँ यहाँ की करती तकरारें बहुत है।
यहाँ के अर्श की फ़ितरत भी
कुछ अजीब जानिए,
चांद कहीं दिखता नहीं सितारे बहुत हैं।
इस शहर की रवायतें मैं क्या
बताऊँ आपको,
ढूँढें तो दरिया नहीं किनारे बहुत हैं।
9
नवंबर 2005
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