उड़ती तितली की
तरह
उदास रात की कोई सुबह हसीन
नहीं।
नहीं आसमाँ मेरा, मेरी कहीं ज़मीन नहीं।
मैं खूशबू बन के हवा में नहीं
बसती,
मैं कोई किरणों की तरह भी महीन नहीं।
मुझे ख्वाबों में मत तराश अभी,
उड़ती तितली की तरह, मैं कोई रंगीन नहीं।
छुप जाते हैं कभी-कभी,
चाँद-तारे भी,
मेरा कत्ल ही है, ये गुनाह कोई संगीन नही।
दफ़्न कर या जला दे अब मुझको,
जिस्म में रूह नहीं, अब कोई तौहीन नहीं।
भूला बैठा है, वो बेवफा मुझको,
मिला कहीं तो पहचाने, इसका भी यकीन नहीं।
बुझ गया ये ''दीप'' ,सुबह के
सितारे के लिए,
खुश हूँ मिट कर भी, मैं कोई गमगीन नहीं।
१४ अप्रैल २००८
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