बेड़ियाँ बाकी अभी
है
तोड़ चुके ज़ंजीरें कई हम, मगर,
बेड़ियाँ बाकी अभी है और भी।
ना रुको तुम देख ये ऊँचाइयाँ,
है अभी बाकी मुकाम और भी।
इन बुलंदियों पर तो हम आ चुके,
करने बहुत है काम और भी।
सिर्फ़ ये ही नहीं है मंज़िलें,
रास्ता बाकी अभी है और भी।
दे चुके दुनिया को बहुत, अब
खुद के लिए पाना है और भी।
हर तरफ़ खुशहाली बढ़े,
कई घर है सजाने और भी।
दीप यों तो फैली है रोशनी अपनी,
करना है नाम देश का और भी।
१४ अप्रैल २००८ |