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अनुभूति में हेम ज्योत्स्ना पाराशर
की रचनाएँ—

उड़ती तितली की तरह
उड़ना हवा में खुल कर 
कविता हूँ मैं
बहुत काम आया हमें
बुढ़ापा
बेड़ियाँ बाकी अभी है
हे जीव जगत के

 

बहुत काम आया हमें

जो ग़म देके तुमने सिखाया हमें।
ज़िन्दगी में बहुत काम आया हमें।

जब लगी ठोकर, गिर के बैठ गए,
तब लगा पास तुमने बिठाया हमें।

गुज़र जाते बरसों मगर ना समझते,
चन्द लम्हों में तुमने समझाया हमें।

हैं वही फिर भी, नई-सी लगी,
जाने कैसे दुनिया को तुमने दिखाया हमें।

जो हुए हम परेशाँ, कहीं पे कभी,
आ-आ के यादों में बहुत बहलाया हमें।

कभी जब लगा रूठे बैठे हैं हम,
तो बहुत खूब तुमने मनाया हमें।

जानते थे हम भी कुछ मगर,
लगा जैसे सब तुम्हीं ने बताया हमें।

१४ अप्रैल २००८

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