अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में हेम ज्योत्स्ना पाराशर
की रचनाएँ—

उड़ती तितली की तरह
उड़ना हवा में खुल कर 
कविता हूँ मैं
बहुत काम आया हमें
बुढ़ापा
बेड़ियाँ बाकी अभी है
हे जीव जगत के

 

हे जीव जगत के

हे जीव जगत के मनुज सुन,
तू बलशाली है थक हार नहीं।

जीत तेरी हर सुबह होगी,
मानेगा जब तक तू हार नहीं।

माना है रस्ता पथरीला,
तू पल पल इसे निहार नहीं।

तू सफल नहीं है आज मगर,
खुद को असफल स्वीकार नहीं।

है अदम्य साहस का मालिक,
डरना तेरा व्यवहार नहीं।

तू रखता है शस्त्र हौसला,
घबराना तेरा प्रहार नहीं।

जश्न विजय पर गाने वाले,
ईद दिवाली ही तेरा त्यौहार नहीं।

पाना खोना खेल है जीवन,
दर्द ही इसका सार नहीं।

१४ अप्रैल २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter