सरकारी
इस मोड़ से आना-जाना जारी है
बिछा है बाज़ार, भाव लगाना जारी है
हर चौराहे पे खड़े हैं बड़े कोतवाल
बिकना-बिकना, इल्ज़ाम लगाना जारी है
गली के उस मोड़ पर हैं सरकारी दफ्तर
ढेरों काम पड़ा हैं, आराम फ़रमाना जारी है
बढ़ने लगी है तादाद लाला-बनियों की
रिश्ते बनाना, धंधा बढ़ाना जारी है
महँगे भाव बिकने लगी है शक्कर-मिर्ची
कसैले अलफ़ाज़ों का यों ही झरना जारी है
रुपयों से भर जाता है हर शाम थैला
रिश्तों में प्यार की गरीबी बदस्तूर जारी है
9 जून 2007
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