बस तुझे चाहती हूँ
कहना, सुनना और फिर से चहकना चाहती हूँ
मेरा वजूद तू है, तुझको फिर ढूँढ़ना चाहती हूँ
कितनी गहराई थी उन मासूम आँखों में
बस, फिर उस एक नज़र की होना चाहती हूँ
उसकी हर एक रात का सपना थी मैं
फिर उन्हीं रातों मैं खोना चाहती हूँ
अपने न होने का भी गुमां था मुझको
बस, उसी एक वजूद को पाना चाहती हूँ
जिसकी साँसों में घुलकर ताबीर हो जाती थी
उन धड़कनों में फिर से बसना चाहती हूँ
मुझ जैसा वो है और उस जैसी मैं
बस, उसी के असर में जीना चाहती हूँ
9 जून 2007
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